श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी - जीवन परिचय
पूज्यपाद विश्वपूज्य गुरुदेवेश के स्वर्गावास वर्ष , वि.सं. 1963 में श्री गिरधारीसिंह जी राठौर की धर्मपत्नी सुन्दरबाई की कुक्षी से आपका जन्म हुआ | नामकरण हुआ - बहादुरसिंह उर्फ प्रभुलाल
मंदसौर के समीपस्थ चल्दु ग्राम आपको आपके काका श्री ने आचार्य देव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. के चरणों में समर्पित किया |
आचार्य श्री शिक्षा -दीक्षा पूर्ण होने पर सर्वप्रकार योग्य जानकर , आचार्य श्री ने वि.सं. 1972 , माघ सुदी 11 जावरा (म.प्र.) में आपको भागवती प्रव्रज्या प्रदान की | नूतन नामाभिधान हुआ - मुनिश्री विद्याविजय जी म.सा. |
पूज्य आचार्य श्री ने अपने अंतिम समय में वि.सं. 2017 भाद्रवा सुदी 13 को भावी आचार्य पद हेतु आपको मनोनित किया |
आचार्य भगवंत स्वर्गगमन के पश्चात् सकल संघ की साक्षी में वि.सं. 2021 की फाल्गुन सुदी 3 को श्री मोहनखेड़ा की पुण्य वसुंधरा पर आपको आचार्य पद से अलंकृत किया गया | इसी दिन आपने स्वगुरु श्री यतीन्द्र
सूरी समाधि मंदिर की प्रतिष्ठा एवं राजगढ़ तथा बागरा की एक एक श्राविका को दीक्षा प्रदान की थी |
आप सरलता - सौजन्यता -समता की साक्षात् प्रतिमूर्ति तथा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के परम आराधक थे |
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ उद्धार की पावन प्रेरणा देकर तीर्थ विकास में अपना अमूल्य मार्गदर्शन दिया |
मोहनखेड़ा , भीनमाल (महावीरजी) , सूरा , मेंगलवा , मंदसौर आदि अनेक स्थानों पर आपको द्वारा प्रतिष्ठा अंजनशलाका संपन्न हुई |
उपधान , छ: रिपालित संघ ,दीक्षा आदि अनेक शासन प्रभाविक प्रसंग आपश्री की निश्रा में साकार बने |
श्री रामचंद्र विजय जी म.सा. आदि 11 शिष्य हुए | आपके शिष्य श्री रवींद्र सूरीश्वर जी म.सा. गुरु परम्परा के सप्तम पट्टधर बने तथा श्री ऋषभचंद्रविजयजी म.सा.
सं. 2074 के वैशाख सुदी 12 को अष्टम आचार्य पट्ट पर सुशोभित होंगे | सा. श्री प्रियदर्शनाश्रीजी आदि 50 श्राविकाओं को भी आपने दीक्षाव्रत प्रदान किया |
आप श्री कविह्रदय थे | आपके द्वारा रचित अनेक दोहे , स्तवन - सज्झाय -स्तुतियां आज भी जैन संघ में भक्तिपूरित होकर गाये जाते है |
शिवादेवी नंदन काव्य , प्रभुगुण सरिता , दशावतारी , महावीरचरित , गुरु चालीसा आदि आपकी काव्य रचनाएं है |
आपने त्रि स्तुतिक संघ में सर्व प्रथम साधु -साध्वीजी भगवन्तो को उच्च शिक्षा (पी एच डी ) की अनुमति प्रदान की | उसके पश्चात लगभग 25 से अधिक श्रमण -श्रमणियों ने एम.ए. , बी.ए. , पीएच डी. कर गुरुगच्छ का गौरव बढ़ाया है |
वि.सं. 2036 , आषाढ़ सुदी 7 को गुरु पुण्यभूमि श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर रात्रि 11 बजकर 40 मिनट पर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः का जप करते हुए आपने
नश्वर देह का त्याग किया | आप त्रि स्तुतिक गच्छ के तृतीय आचार्य थे जिनका समाधि मंदिर श्री मोहनखेड़ा में बना |