गुरुदेव का जन्म - जीवन परिचय
वि.स. 1896 के चैत्र सुदी 4 को किशन गढ़ (राज) में शा. ऋध्दिकरण जी की धर्म पत्नी अचला देवी की रत्न कुक्षी से आप श्री का जन्म हुआ | नामकरण हुआ - धनराज |
सं. 1917 के वैशाख सुदी 3 को धानेरा (उ. गु. ) में यतिवर्य श्री लक्ष्मी विजय जी के वरद हस्त से यति दीक्षा ग्रहण की | वि. स. 1925 के आषाढ़ वदी 10 को जावरा (म.प्र.) में पूज्यपाद गुरुदेवश श्रीमद्विजय
राजेंद्र सूरीश्वर जी म.सा. के साथ क्रियोद्धार एवं संवेगी दीक्षा ग्रहण कर दादा गुरुदेव श्री के प्रथम शिष्य बने |
दादा गुरुदेव श्री के वरद हस्त से खाचरौद (म.प्र.) में सं. 1925 के मगसर सुदी 5 को उपाध्याय पद से अलंकृत हुए | पूज्यपाद गुरुदेवेश के स्वर्ग गमन के पश्चात चतुर्विध संघ की साक्षी में जावरा (म.प्र.) में सं. 1965 के
ज्येष्ठ सुदी 11 को सूरीपद से मंडित हुए |
पूज्यपाद धनचंद्र सूरीश्वर जी म.सा. के शुभ सानिध्य में अनेक प्रतिष्ठांजन शलाका छ:री पालित संघ , उपधान आदि अनेक शासन प्रभावक कार्य संपन्न हुए | विशेषतः मारवाड़ बरलुट , काणोदर , मण्डवारिया
आदि प्रतिष्ठायें ऐतिहासिक रही | आपके कर कमलों से दादा गुरुदेव श्री के प्रिय शिष्य पन्यास श्री मोहनविजय जी म.सा. को वि.सं. 1966 पौष सुदी 9 को उपाध्याय पद प्राप्त हुआ | श्री हंसविजय जी आदि 4
शिष्य हुए | स्तुति प्रभाकर , जन मांसभक्षण निषेध , प्रश्नामृत प्रश्नोत्तर तरंग , चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धार , जैन विधवा पुनर्लग्ननिषेध आदि 50 से अधिक ग्रन्थ सर्जन आपकी ज्ञानगरिमा को प्रकट करता है |
वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर , तर्कशक्ति , वाद शक्ति , हाजिर जवाबी आदि गुणालंकृत होने के कारण आपने 'चर्चा चक्रवती ' बिरुद को गौरवान्वित किया |
पर्युषण महापर्व में वीर जन्म वाचन के दिन सं. 1977 के भाद्रवा सुदी एकम , सोमवार के दिन रात्रि 8 बजे मरुधर की धर्मधरा बागरा (जि. जालोर ) में आपश्री का स्वर्गावास हुआ |
चर्चा चक्रवती गुरुदेव श्री की साहित्य यात्रा शासन प्रभावना ने गुरुगच्छ की कीर्ति में चार चाँद लगाये है |